Bhangarh Fort Story in Hindi - पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारें में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है। दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्मत रखतें है। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है। कुछ ऐसा ही एक किलें के बारे में आपको बताउंगा जो कि अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है। अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारें में पढ़ा है, लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी की भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा, जहां सूरज डूबते ही रूहों का कब्जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव। राजस्थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है। तो आइये इस लेख के माध्यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं।
भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है। चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।
भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छुक थे। उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्यो से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्यक्ति खड़ा होकर उन्हे बहुत ही गौर से देख रहा था। सिंघीया उसी राज्य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।
क्या हुआ राजकुमारी रत्नावती के साथ राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्थर पर पटक दिया। पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी। उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रूहें घुमती हैं।
किलें में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है। इस ऐतिहासिक किले की यात्रा करने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें और जानें कि आप कैसे इस जगह जा सकतें हैं।
किलें में रूहों का कब्जा इस किले में कत्लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।
इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा कमेंट बॉक्स में अपने विचार जरूर दें।
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भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है। चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।
भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छुक थे। उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्यो से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्यक्ति खड़ा होकर उन्हे बहुत ही गौर से देख रहा था। सिंघीया उसी राज्य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।
क्या हुआ राजकुमारी रत्नावती के साथ राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्थर पर पटक दिया। पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी। उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रूहें घुमती हैं।
किलें में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है। इस ऐतिहासिक किले की यात्रा करने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें और जानें कि आप कैसे इस जगह जा सकतें हैं।
किलें में रूहों का कब्जा इस किले में कत्लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।
इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा कमेंट बॉक्स में अपने विचार जरूर दें।
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